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Tuesday, September 25, 2012



किराए का मकान और वास्तु दोष – ३
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जिस प्रकार अब तक हमने ये जानकारी ली की किराए के मकान को भी स्वयं के अनुकूल बनाया जा सकता है. कोई भी स्वेच्छा से किराए के मकान में तो रहना नहीं पसंद करता परन्तु अगर घर का वातावरण सुखद, शुद्ध, प्रेममय प्रसन्न हो तो किराए वाली बात भी गौण हो जाती है.

इन सभी बातो का साधना जीवन में भी तो उतना ही महत्व है..क्युकी किसी भी साधना को करने के लिए सुदृढ़ मानसिक स्थिति, मानसिक बल सकारात्मक वातावरण की अत्यंत आवश्यकता होती है. विगत लेखो में बताई छोटी छोटी सी सुधारणा हमारे मानस को अनुकूल बनाने में सहायक साबित होती है.. इसलिए इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

अब बात करते है चित्र व तस्वीर की, देवी देवताओं के चित्र पूर्व-उत्तर दीवार पर ही लगाए. साथ ही संतो, झरनों, समुद्र, नदियों आदि को भी तस्वीर इसी दिशा में लगाये. मृतक संबंधियो के चित्र दक्षिणी दीवार पर लगाये. उनके चित्र याँ तस्वीरे पूजा कक्ष में ना रखे.

ऐसे चित्र जो हिंसा, रोग, मृत्यु आदि दर्शाते हो तो उन्हें लगाने से बचे. दक्षिणी व पश्चिमी दीवारों पर भारी चीजों के चित्र, बड़े व मोटे वृक्ष, पर्वत आदि के चित्र लगाए.

भारी फर्नीचर दक्षिण व पश्चिम दीवार से लगाकर रखे. हलके फर्नीचर उत्तर व् पूर्वी दीवारों से लगाकर रखे जा सकते है. कमरे का मध्य भाग खाली रखे.

हवा का आगमन उत्तरी तथा पूर्वी दिशाओं की खिड़कियो से होता है सो हमेशा खुली रखनी चाहिए क्युकी ये हिस्से धन एवं स्वस्थ्य के घोतक है. इन दिशाओं में हलके परदे तथा दक्षिण व पश्चिम दिशाओं में भारी परदे लागाये.

यदि घर में सिढ़ियाँ दिखाई पड़े तो यह एक प्रकार का वेध है. यहाँ पर दिशाओं के अनुरूप हलके याँ भारी फुल-पौधे लगाकर इस् प्रकार व्यवस्था करनी चाहिए की सिढ़ियाँ प्रथम द्रिती में ना आये.

घर में ध्वनि उर्जा का भी बहुत महत्व है.. घर में लगातार तेज आवाजो से बचे.. घर के सदस्यों से मधुर व धीमी आवाज में बात करे. घर के दरवाजे खिड़किया बहुत जोर से बंद ना करे.

ऊर्जा विज्ञान एक बहुत विस्तृत विषय है. वास्तु के दृष्टिकोण से ऊर्जा विज्ञान अपने आप में एक एसी कड़ी हे जिस से आप मूल दोष तक पहुच सकते है. क्युकी ग्राफ्स, डायग्राम, कोण विचार केवल लेखी रूप से समझने के लिए होते है. परन्तु वास्तु दोष को समझने के लिए आपकी इन्द्रियाँ सक्रिय होना आवश्यक है ऋणात्मक उर्जा और सकारात्मक उर्जा को केवल महसूस ही किया जा सकता है दिखाया नहीं.

हम सभी ने कभी ना कभी ऐसा महसूस किया होगा की जब कभी हम एकदम चकाचक नए बने हुए मंदिरो में जाते हे तो हम साफ़ सफाई, लोगो का हुजूम तो देख लेते हे लेकिन प्राण ऊर्जा को नहीं महसूस कर पाते वही अगर किसी जीर्ण शीर्ण मंदिर में अगर जाए तो वहा अत्यन्त तीव्र रूप से हमें प्राण ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता ही है. लेकिन हर जगह हर बार नहीं. ये हमारे मानसिक शक्ति पर बहुत निर्भर करता है.

जब कभी कोई मेहमान हमारे घर आते है तो अपनी सकारत्मक या नकारात्मक भाव के साथ आते है और आते ही साथ कुछ मिनटों में हमारे घर का वातावरण भी कलुषित कर देते है. ऐसे में घर के मुख्य द्वार के पास ही अगर कांच के बर्तन या गिलास में निम्बू डाल कर रखे तो ऋणात्मक स्पंदनो को खिंच कर उसे बेअसर कर देने में सहायक होता है.

उसी प्रकार किसी के घर हम पहली बार जाते है तो कई प्रकार की हवा को महसूस करते है. जैसे घर में किसी का बीमार होना, आपसी मतभेदो के कारण निर्मित ऋणात्मक ऊर्जा, सतत रुदन, उदासीनता उजाडपन, मरघट वातावरण इत्यादि और ये सभी दोष हमें साधना जीवन में भी बाधक बनते है. क्युकी कभी कभी एसी उर्जाये हमारा पीछा नहीं छोडती तो घर की ऊर्जा को संजोए रखना घर के सभी सदस्यों के ही हाथ में है. ऐसे में हम निखिल कवच को शुद्ध यथोचित क्रिया के बाद उच्चार कर ऐसे व्यक्तियों से मिलने जा सकते है जिस से हम इन से बचे रहे या उनके घर आने के पहले पठन  कर सुरक्षित हो सकते है क्युकी मेहमानो के जाने के बाद भी असर बना रहता ना कुछ समय.
 

सरिता कुलकर्णी



Thursday, September 20, 2012



किराए का मकान और वास्तु दोष – २
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जिस प्रकार हमने कुछ वास्तु के आधारभूत तथ्य के बारे में जाना उसी प्रकार अब थोडा और गहराई से कुछ बातो को समझे. और उन सावधानियो को अगर हम अपने जीवन में थोडा स्थान दे और अमल करते हे तो निश्चित फायदा हो सकता है. कमसेकम नुक्सान तो नहीं होगा.. हमारे कितने ऐसे परिचित हे जो वास्तू तज्ञ की बातो में आकार ढेर सारा रूपया खर्च कर देते हे जिस में से अधिकांश  हिस्सा तो उनकी बड़ी सी फीस में ही चला जाता है. और समय बीतता जाता है और कोई परिणाम हाथ नहीं आता तो क्यों ना हम इन छोटे छोटे टिप्स को आजमा कर देखे....

 मुख्य द्वार – घर का मुख्य द्वार सबसे महत्वपूर्ण है. घर से निकलना, वापस आना इत्यादि दिन के कार्य मनुष्य के जीवन में उर्जा के भंडार होते है. ये सकारात्मक या नकारात्मक दोनों हो सकते है. मान लीजिए आपका प्रवेश द्वार दक्षिण-पूर्व का पूर्व या दक्षिण-पश्चिम का दक्षिण है. यह स्थिति शुभ नहीं है.. फिर क्या करे? मुख्य द्वार से ३ फिट दूर ६ फिट ऊँची लकड़ी की एक स्क्रीन इस् तरह लगाये की प्रवेश करते समय आप दाई तरफ घुमे व् घर में उत्तर पूर्व या दक्षिण पूर्व के दक्षिण से प्रवेश करे.

रसोई घर – घर में रसोई घर जिस भी कमरे है यह व्यवस्था करे की कमरे के दक्षिण पूर्व में चूल्हा व् सिलिंडर हो. खाना बनाने वाला पूर्व की ओर मुख करके खाना बनाये. पूर्वी दीवार के कोने पर एक दर्पण लगा ले.

जल – पानी रखने का पात्र आदि उत्तर, उत्तर-पूर्व में रखे. ईशान कोण साफ़ सुथरा रहे. इस् बात का ध्यान रखे की अग्नि व् जल बहुत नजदीक न हो.

शौचालय – शौचालय का सही स्थान पर होना आवश्यक है. यह ‘वायव्य’ में हो तो सर्वोत्तम है. पूर्व व् उत्तर में नहीं होना चाहिए. यदि आपका शौचालय ऐसा स्थित हो तो इस् दिशा में उत्तरी या पूर्व दीवार पर एक दर्पण लगाये.

बच्चों का कमरा – बच्चों को पूर्व या पश्चिम के कमरे दिए जा सकते है. बच्चे उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके पढाई करे. उनके कमरे में अनावश्यक चीजे न राखी जाए. इस् कमरे का उत्तर-पश्चिम (वायव्य) खाली रखा जाए. ज्ञान क्षेत्र (उत्तर-पूर्व) में दर्पण लगाकर सक्रीय कर दे. बच्चे इस् तरह सोये की प्रातः उठने पर उन्हें सर्वप्रथम उर्जा क्षेत्र (उत्तर या पूर्व) देखने को मिले.


सरिता कुलकर्णी

Wednesday, September 12, 2012

Graha Mala Series : Chandra

गृह माला / भाग 1

चन्द्र गृह

शिवरात्री के पवन अवसर पर चन्द्र गृह के बारे में

चन्द्रमा एक प्रकार से काल पुरुष का ह्रदय है. ह्रदय की समस्त वृत्तियों, विकारों एवं प्रभावों का अध्ययन चन्द्रमा के द्वारा संभव है. जिस प्रकार मन चंचल है ठीक उसी प्रकार चन्द्र भी समस्त ग्रहों में सर्वाधिक चंचल एवं शीघ्रगामी है. मात्र ढाई दिन में ही राशि बदलने वाले चन्द्रमाँ के लिए कहा गया है -

                                                                               स्वक्षः प्राज्ञौ: गौरश्चपलः        
                                                                               काफ वातिको रुधिरसारः . 
                                                                               मृदुवाणी प्रिय सखास्तनु
                                                                                  व्रुत्तश्चन्द्रमाः हाशु:

अर्थात सुन्दर नेत्र वाला, बुद्धिमान, गौर वर्ण, चपल स्वाभाव, चंचल प्रकृति, काफ और वात प्रकृति प्रधान, मधुर वाणी बोलने वाले, मित्र पर न्योछावर होने वाला और दीर्घ शरीर वाला एसा चन्द्रमा होता है...
आहा रात्रि काल में चन्द्रमा को देखना कितना सुखद एहसास हे.. अपने जीवन में हर किसी ने इस एहसास को जिया होगा कभी न कभी. प्रेम का कारक चन्द्र मातृप्रेम का आविष्कार करने वाला जल तत्त्व का स्त्री गृह हे. चन्द्र ये स्नेही, कुटुंब वत्सल और चंचल हे. इस गृह में सेवाभावी वृत्ति हे. मन का कारक चन्द्र हव्यासी हे मोह, माया, आसक्ति, संसारिकता,कल्पना शक्ति का कारक हे. चन्द्र गृह बाल्यावस्था का कारक मन गया हे. आयु के ८-१० साल तक चन्द्र गृह का अमल होता हे. इसी कारण छोटे बालको की कुंडली में चन्द्र महत्त्वपूर्ण माना गया हे. चन्द्र सुख दुःख, हव्यास समाधान, मनः शांती इनका करक है. इसी कारान चन्द्र गृह से ही जातक या व्यक्ति की तृप्तता व निद्रा निर्भर करती है.

मनुष्यों में रमने वाला चन्द्र रिश्तो को संभालना और उसे अंतिम तक निभाने की प्रेरणा देता हे. क्युकी मन चन्द्र के अंतर्गत आता हे... चन्द्र केवल अपने निकट व्यक्तियों पर स्नेह करते हे, अपने ही मनोराज्य में रमने वाले उत्तम कल्पना शक्ति दायक होते हे. उनका अपना अलग ही विश्व होता हे चन्द्र प्रधान व्यक्ति अपने ही धुन में रहते हे और इसी कारण इन्हें वास्तविक का आभास कम होता हे. अपने ही धुन में रहने के कारण वास्तिविकता का बोध कम होता है और परिपक्वता भी कम होती है. इसी कारण बच्चो में ज्यादा रम जाते हे. मात्रु सुख का कारक चन्द्र से माता का विचार किया जाता है.

पाकगृह में रमने वाले चन्द्र गृह जो स्त्री तत्त्व प्रधान है उन्हें खानेपीने की, खाद्यपदार्थ बनाने की और दुसरो खिलाने की अभिरुचि होती है. स्थितिया हो न हो लेकिन आवभगत से चूकते नहीं. चन्द्र ग्रह वास्तु का, रहते घर का कारक है. इसीलिए वास्तु योग में ये महत्वपूर्ण साबित होते है. चन्द्र गृह जलीय पदार्थ, जलाशय इनका कारक है. इसी कारण जल के छोटे कूपक, तालाब, टंकिया, दूध, दुग्ध्जन्य पदार्थ, जलाशय पर अमल रखते है. चन्द्र वनस्पति का भी कारक है. इसीलिए आयुर्वेद का भी कारक हुआ. जडीबुटीया भी तो कितनी नाजुक होती हे ठीक हमारे मन की तरह..है न..इसीलिए भी चन्द्र का अमल होता है. बाग़ बगीचे, खेती भी चन्द्र पर से देखि जाती हे कुंडली में. जितनी भी नाशवंती चीजे हे जैसे सब्जीया, फल, फुल, पका हुआ अन्ना सब इन्ही के अमल में आता हे.

शरीरशास्त्र अनुसार चन्द्र मन और इच्छाशक्ति का कारक है. साधनाओ में भाव का कारक भी मन ही तो है. फिर चाहे वो मंत्र साधना हो या तंत्र साधना. स्त्रीयों का मासिक धर्मं, उनसे सम्बंधित सभी विकार चन्द्र के अंतर्गत आते है. रक्त का कारक होने के कारण हीमोग्लोबिन का कम होना, त्वचाविकार, किडनी विकार, मूत्र विकार, पाचन संस्था, मानसिक विकार ये सभी चन्द्र के क्षेत्र में आते है. आरोग्य का विचार करते हुए चन्द्र नेत्र के कारक है. नेत्र दोष, अंधापन, चश्मा लगना ये सब इन्ही के अंतर्गत आते हे.

चन्द्र का बीज गुण है - "मन" और "बोध"
अंकशास्त्र अनुसार अंक - २
रत्ना - मोती
धातु - चांदी
रंग - सफ़ेद, नारंगी
त्रिदोष - वात कफ कारक
स्व राशी - कर्क
नीच राशि - वृश्चिक
उच्च राशि - वृषभ
मित्र गृह - रवि, गुरु, मंगल
सम मित्र गृह - शुक्र, बुध, शनि
शत्रु गृह - रहू, केतु

प्रेम के बीज का प्रस्फुरण करने वाले चन्द्रमा बहुत ही शीतल गृह हे जो आँखों में शीतलता प्रदान करते हे और ह्रदय में प्रेम जगाने वाले है....

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Saturday, September 1, 2012




किराए का माकन और वास्तु दोष - १

वास्तु शास्त्र को सच्चे संदर्भो में ऊर्जा विज्ञान भी कहा जा सकता है. इसे ‘स्थ्पात्यावेद’ भी कहते है. यह शास्त्र मनुष्य को प्रक्रति के अनुरूप चलने के लिए प्रेरित करता है. पंचमहाभूतो – पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से इस् शरीर का निर्माण हुआ है और यही पञ्च तत्व प्रकृति में भी विद्यमान है. यद्यपि इनके अतिरिक्त अन्य कई ऊर्जा ए तत्व है जो हमारे जीवन को प्रभावित करते है परन्तु आधारभूत तत्व यही पञ्चतत्त्व है.

हमारे यहाँ पहले के ऋषि मुनियों बहुत पहले उन उर्जावान तत्वों की पहचान का ली थी. जिनके उचित समावेश से एक सुव्यवस्थित जीवन जिया जा सकता है. जो लोग किराये के मकान या अपार्टमेंट में रहते है उनके पास दरवाजे, रसोई घर, शौचालय, प्रवेश द्वार आदि को वास्तु के आधार पर परिवर्तित करने के लिए विकल्प नहीं होते है.

भारीपन (गुरुता) – यह पृथ्वी तत्व से संबंधित है.. भारी चीजे दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम व पश्चिम में रखी जानी चाहिए..

हल्कापन – यह जल तत्व से सम्बंधित है. हलकी चीजे पूर्व, उत्तर व ईशान (उत्तर –पूर्व) में राखी जाये तो लाभ हो सकता है.
यह सिद्धांत मकान के सभी कमरों पर सामान रूप से लागू होता है..

वायव्य वायु तत्व, आग्नेय अग्नि तत्व तथा कमरे का मध्य भाग आकाश तत्व को दर्शाता है.. आकाश तत्व अर्थात तत्व कमरे के मध्य को सदेव भारमुक्त तथा साफ़ सुथरा रखना चाहिए.

अब घर के मुख्यद्वार, रसोईघर, जल ईत्यादी के बारे में जानकारी अगले लेख में देखते है.

सरिता कुलकर्णी






Nakshtra Jyotish

Understanding Gandanta differently

My Observation and Interpretation of GANDANTA POINT These observations are based on Lunar Nakshtra transit.. The excercise still in pro...