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Thursday, October 4, 2012


वास्तु शास्त्र ओर दक्षिण दिशा     ( Part-1 )

प्रायः वास्तु के बारे मे हल्का फुल्का ज्ञान रखने वाले दक्षिणमुखी प्लोट् को तुरन्त ही अशुभ बता दिया जाता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है, अगर वास्तु नियमो का पालन करते हुए दक्षिण मुखी प्लोट् पर निर्माण कराया जाय तो यह भी शुभ होते है। दक्षिण दिशा के स्वामी धर्म तथा मृत्यु के देवता 'यम' होते है।

दक्षिण दिशा के गृह मंगल है, सूर्य तथा मंगल दोनो ही बहुत् गर्म गृ...ह है और् शक्तिशाली भी। सुरज तथा मंगल दोनो का ही लाल रंग है। सूर्य का ताप और मंगल के लाल रंग से होने वाली गर्मी दक्षिण दिशा को बहुत् ही गर्म बना देती है, जिसके कारण से यह दिशा अशुभ मानी जाती। मौसम तथा जलवायु से ही दिशाओ का प्रभाव शुभाशुभ जाना जाता है। अशुभ करार कर दिये जाने के कारण कैइ है लेकिन तर्करहित। भारत वर्ष मे दक्षिण दिशा मे घोर गरम रेह्ने के कारण इसे अशुभ माना जाता है। जबकि बर्फ़िले तथा थण्डे प्रदेश मे दक्षिण दिशा शुभ मानी जाती है क्योकि उनको कडाके कि सर्दी से बचने के लिये भरपूर धूप दक्षिण दिशा से मिलति है।

उर्जा का प्रवाह् उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव तक चुम्कीय लेहरो के रूप मे लगातार होता रेह्ता है और वास्तु सिद्धान्त इसी उर्जा के प्रवाह् पर आधारित है। सभी जानते है कि पृथ्वी अपनी धूरि पर २३.५ अंश तक झुकि है जिससे के पूर्व, ईशान भाग नीचे को दबा है तथा तथा नैत्रत्क्य तथा पश्चामि भाग उंचा उठा हुआ है। इसी कारण उत्तर पूर्व तथा ईशान को खुला तथा हल्का रखने को काहा जाता है। दक्षिण, पश्चिम तथा नैत्रत्क्य को भारी रखने को काहा जाता है।

अब हम देखते है कि अगर दक्षिण मुखी प्लोट् के निर्मान तथा आन्तरिक रखरखाव वास्तु नियमो के अनुसार न होने पर क्या क्या तक्लिफ़े हो सकी है और उनका बिना तोड् फोड के निवारन कैसे हो ?
ये हम देखेंगे अगले लेख मे....

सरिता कुलकर्णी

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