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Saturday, January 5, 2013

राशी शृंखला

* राशी शृंखला भाग १

 एक विशेष जानकारी मे आपके समक्ष रखना चाहुंगी पिछले दिये गये लेखों के बारे मे.... ज्योतिष पर दी गयी जानकारी का हेतु केवल इतना है कि किसी भी रूप मे ये जानकारी आपके दैनिक जीवन मे आपको लाभ पाहुचां सके। क्योकि समस्यायें अगर है तो उनका हल भी मौजुद् है बस्स हमे अपनी इन्द्रियों को सशक्त करने की देरी है। जिससे हम हमारे आस पास बिखरे हुए ज्ञान प्रवाह् को आत्मसात सही रूप से कर अपना जीवन सौभाग्यशाली और समृद्ध सके ।

आरंभिक समय मे आप लोगों के समक्ष केवल प्रस्ताविक जानकारी उप्लब्ध करायि जो सरलता से बोधप्रद हो। आगे इन्ही सब् विषयो के बार मे विस्तार से कभी आने वाले लेखों मे आप पढ सकेंगे। हमने पंच तत्वो के बारे मे थोडा जाना। किस प्रकार ये तत्व कार्य करते है हमारे लिये ? किस प्रकार हम इन तत्वो कि मदद से लोगो को पेहचान सकते है ? कैसे इन तत्वो का हम आपने शरीर मे संतुलन स्थापित कर सुचारु रूप से अपनी कार्यक्षमता को बढा सकते है? इत्यादि प्रकार के प्रश्नो के उत्तर आप निश्चित आगे आने वाले लेखो मे पा सकेंगे।

खैर,अब आगे बढते है हमने देखा कि ज्योतिष मे 'पंच महाभूतों' का अस्तित्व प्रमुख माना गया है। हमने देखा कि किस प्रकार इन तत्वो का मनुष्य जीवन मे प्रभाव पडता है या यु कहे कि किस किस प्रकार के तत्व मनुष्यो मे पाये जाते है जिस से हम मनुष्यो को सहज रूप से श्रेणीबद्ध कर देते है। उदाह्रण जैसे - हम बहुत् बार केह् देते है बातों बातों मे अरे फ़ला जरा गुस्सेल है.., या जरा सुस्त अल्सीराम है..., या कभी हम यु केह् देते है पेहली बार ही किसी से मिलने पर कि, वाह् क्या बात है - इस बंदे मे जरुर कुछः है निश्चित आगे बढेगा या इत्यादि....

जाने अनजाने मे हम कितनो के लिये कुछः न कुछः केह् देते है या मन ही मन सोच लेते है ।हमारा सूक्ष्म मन हमे इस तरह् के निष्कर्शों को निकालने मे बाध्य कर देता है और हम बाह्य रूप से आचरन विचरन करते रेह्ते है। वैसे तो निरीक्षन करना या आस पास कि हलचल को देखना या मेहसुस कर समझना मनुष्य के स्वभाव मे है। बस फ़र्क इतना है कि कई व्यक्ति इस समज़् को मेहत्ता देते है और बाकी अनदेखा कर देते hai। इस प्रकृति के आन्तरिक रहस्य को हम कुछः हद तक समझते है और जहां ये रहस्य हमारी समझ के बाहर हो जाये तो वहीं छोड्के आगे बढ जाते है हमारी ये निरीक्षन शक्ति ही हमे लोगों से दूरीयां या नजदीकीयां निर्मान करने मे मदद करती है। इसके बारे मे गेहेन्ता से कभी और चर्चा करेंगे। खैर, हम बात कर रहे है ज्योतिष की। इस रहस्य को जानने के बाद अब हम आगे बढते है "राशी शृंखला" की ओर। राशीयों का परिचय आरम्भ् करने के पेहले ये जानना जरुरी है कि राशि क्या होती है? ज्योतिष मे इसका क्या स्थान है? और कैसे हम अपने आसपास के लोगों को सही रूप से जान पाने मे इस ज्योतिष विज्ञान का सदुपयोग कर सकते है।

कुण्डली मे चन्द्र जिस स्थान पर विद्यमान होते है वो जातक कि जन्म राशि केह्लायी जाती है। जन्म के समय चन्द्र जिस नक्षत्र मे होते है वह जन्म नक्षत्र होता है। क्रान्तिवृत्त के १२ समान भाग करने पर १२ राशिया तयार होती है। क्रान्तिवृत्त ३६० अंश का होता है सो इसके १२ समान भाग अर्थात ३० अंश के हुए। जातक के जन्म समय पर चन्द्र जिस राशि मे भ्रमन कर रहे होते है वो उसकी जन्म राशि हुइ और जो बिन्दु पूर्व क्षितिज पर उदित होता है वह जन्म लग्न हुआ। जन्म लग्न या जन्म राशि पर विस्तृत जानकारी क्रमशः अगले लेखो मे हम देखेंगे। ह्मम तो हम बात कर रहे थे जातक का जन्म लग्न अर्थात जन्म राशि जातक कि प्रव्रत्ति है तो दुसरी ओर चन्द्र राशि उसकी मनोवृत्ति। मनोवृत्ति मे बदलाव लाया जा सकता है क्योंकि वह मन से सम्बन्धित होती है लेकिन प्रव्रत्ति मूलभूत पिण्ड जो बदलता नही। चन्द्र जिस राशि मे होते है या जिस राशि मे से भ्रमन करते है उस राशि के तत्वानुसार उसके गुन्धर्मानुसार फ़लित् प्रदान करते है।

१२ राशियां इस प्रकार है –

मेष , वृषभ, मिथुन
कर्क, सिन्ह्, कन्या
तुला, वृश्चिक, धनु
मकर, कुम्भ, मीन
अगले लेख मे हम इन राशियो को क्रमशः पढते जायेंगे और साथ् ही साथ् उनसे जुडे हुए विविध तथ्य जैसे रशियो के रत्न, उनका शारीरिक वर्णन, उनका कार्यक्षेत्र, रोग अनुसार शारीरिक सत्ता इत्यादि।


सरिता कुलकर्णी



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