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Saturday, October 20, 2012



वास्तु शास्त्र ओर दक्षिण दिशा      ( Part-2 )
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पिछले लेख मे हमने ये जाना कि दक्षिण दिशा का वास्तुनुसार क्या मेहेत्व और किस प्रकार कि भ्रान्तिया इस बारे मे फ़ैलि हुइ है । अब हम देखेंगे कि इस प्रकार कि त्रुटीयों का निवारन कैसे बिन तोड् फोड के, कम खर्चे मे किया जा सकता है।

1.दक्षिण मुखी भवन मे नैत्रक्त्य कोण (यानि दक्षिण पश्चिम का कोणा) मे दरवाजा होने पर अति विनाशकारी, हत्या, स्त्री कष्ट, मांगलिक कार्यो मे ब...ाधा, आर्थिक कष्ट, भयङ्कर बीमारी का सामना करना पडा है।

2.अगर संभव हो तो तुरन्त इस जगह् से दरवाजे को हटा दे। अगर हटाना संभव न हो तो मुख्य द्वार के उपर आगे पीछे दोनो तरफ़् गणेश जि कि फोटो या चित्र लगाय। दरवाजे के चौखट के नीचे चण्डी का तार लगाय। त्रिशक्ति को भी दरवाजे के दोनो तरफ़् लगा सकते है। पूजा स्थल पर रहू यन्त्र को लगाय, उसकी पूजा करे।

3.अगर दक्षिण दिशा कि तरफ़् उत्तर दिशा से ज्यादा नीचा और अधिक खुला होने पर उच्च रक्तचाप्, पाचन क्रिया मे गडबडी, चोट लगने का भय, खून कि कमी, महिलाए सदा बीमार आर्थिक कष्ट का सामना करना पडता है। इस दोष को जल्द से जल्द दूर करना ठिक रहेगा। इसके लिये दक्षिण दिशा के अन्दर ही बडे बडे भारी पेड लगाए। हो सके तो पत्थर की दीवार बनाये और उस पर लाल रंग की बेल चढायें। दक्षिण दिशा के कोने मे तांबे का झण्डा लगाये जो कि घर से सबसे ऊंचा होना चाहिये।

4.इसके अलावा दक्षिण दिशा की बाहरी दीवार तथा इस दिशा मे स्थित मुख्य दरवाजे को लाल रंग से रंगवाये। पूजा मे हनुमान जि कि उपासना तथा मंगल गृह का जाप् करे। इसके अलावा तंबा पर बने मंगल यन्त्र को दक्षिण दिशा मे स्थित मुख्य दरवाजे के दायि तरफ़् लगाये। अगर दरवाजा न हो तो दीवार पर ही लगाये।

5.अगर दक्षिण दिशा मे कुआ गड्ढा बोरिंग, दीवारों मे दरार पुराने कबाद आदि हो तो घर मे अचानक दुर्घटना, हृदय रोग, जोंडों मे दर्द, खून की कमी, पिलिया आखों की बीमारी हो सकती है। इसके लिये तुरन्त ही गड्ढो को सही करा दे।

6.अगर तुरन्त संभव न हो तो उस पर कागज लगा दे। अगर बोरिंग बंद करना संभव हो तो बोरिंग पाइप को फ़र्श के अंदर से पाइप ले जा कर के ईशान कोण कि तरफ़् पानी को निकाले। दक्षिण दिशा की तरफ़् भारी भारी पतथरो को रखवा दे।दक्षिण दिशा कि तरफ़् जमीन के अन्दर तांबे का तार लगवाना बेहतर होगा।

इसके अलावा और भी कुछः सटीक और सरल उपायो को लेकेर कल फिर एक और लेख आप ही के लिये। आज यहि पर समाप्त करती हुं ।


सरिता कुलकर्णी

Thursday, October 4, 2012


वास्तु शास्त्र ओर दक्षिण दिशा     ( Part-1 )

प्रायः वास्तु के बारे मे हल्का फुल्का ज्ञान रखने वाले दक्षिणमुखी प्लोट् को तुरन्त ही अशुभ बता दिया जाता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है, अगर वास्तु नियमो का पालन करते हुए दक्षिण मुखी प्लोट् पर निर्माण कराया जाय तो यह भी शुभ होते है। दक्षिण दिशा के स्वामी धर्म तथा मृत्यु के देवता 'यम' होते है।

दक्षिण दिशा के गृह मंगल है, सूर्य तथा मंगल दोनो ही बहुत् गर्म गृ...ह है और् शक्तिशाली भी। सुरज तथा मंगल दोनो का ही लाल रंग है। सूर्य का ताप और मंगल के लाल रंग से होने वाली गर्मी दक्षिण दिशा को बहुत् ही गर्म बना देती है, जिसके कारण से यह दिशा अशुभ मानी जाती। मौसम तथा जलवायु से ही दिशाओ का प्रभाव शुभाशुभ जाना जाता है। अशुभ करार कर दिये जाने के कारण कैइ है लेकिन तर्करहित। भारत वर्ष मे दक्षिण दिशा मे घोर गरम रेह्ने के कारण इसे अशुभ माना जाता है। जबकि बर्फ़िले तथा थण्डे प्रदेश मे दक्षिण दिशा शुभ मानी जाती है क्योकि उनको कडाके कि सर्दी से बचने के लिये भरपूर धूप दक्षिण दिशा से मिलति है।

उर्जा का प्रवाह् उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव तक चुम्कीय लेहरो के रूप मे लगातार होता रेह्ता है और वास्तु सिद्धान्त इसी उर्जा के प्रवाह् पर आधारित है। सभी जानते है कि पृथ्वी अपनी धूरि पर २३.५ अंश तक झुकि है जिससे के पूर्व, ईशान भाग नीचे को दबा है तथा तथा नैत्रत्क्य तथा पश्चामि भाग उंचा उठा हुआ है। इसी कारण उत्तर पूर्व तथा ईशान को खुला तथा हल्का रखने को काहा जाता है। दक्षिण, पश्चिम तथा नैत्रत्क्य को भारी रखने को काहा जाता है।

अब हम देखते है कि अगर दक्षिण मुखी प्लोट् के निर्मान तथा आन्तरिक रखरखाव वास्तु नियमो के अनुसार न होने पर क्या क्या तक्लिफ़े हो सकी है और उनका बिना तोड् फोड के निवारन कैसे हो ?
ये हम देखेंगे अगले लेख मे....

सरिता कुलकर्णी

Nakshtra Jyotish

Understanding Gandanta differently

My Observation and Interpretation of GANDANTA POINT These observations are based on Lunar Nakshtra transit.. The excercise still in pro...