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Sunday, March 25, 2012

प्राणशक्ति का महत्व - १

प्राणशक्ति का महत्व - १ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

आतंरिक साधना जगत इतना विशाल और विस्मयकारी है की कल्पना करना भी एक कल्पना मात्र ही है. परन्तु जो कल्पना में है उसका अस्तित्व भी निश्चित कही ना कही विद्यमान है. क्युकी हमारा सुक्ष्म मन विचरण करते हुए उन कल्पनाओं का साकार रूप प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से देख आता है.   प्रत्येक साधना में कुछ ऐसे तथ्य या आवश्यक बाते होती है जो अनिवार्य है. जिन के बिना हम यथोवान्छित फल प्राप्ति नहीं कर सकते. उन मूल तथ्यों में प्राण शक्ति का स्थान अलेखनीय है.

प्राण शक्ति, मनःशक्ति के अतिरिक्त एक और शक्ति है - आत्म शक्ति है .शरीर में आत्मा और उसकी शक्ति स्वतन्त्र है. प्राणशक्ति और मनःशक्ति की सञ्चालन व्यवस्था आत्मशक्ति द्वारा ही होती है. और उसी के द्वारा दोनों शक्तिया शरीर में क्रियाशील और संचालित रहती है.

योग तंत्र साधना इन्ही तीनो शक्तियों का योग ही तो है. क्रमानुसार प्रथम प्राणशक्ति, फिर मनःशक्ति और अंत में आत्म शक्ति की साधना संपन्न की जाती है.

प्रत्येक व्यक्ति में विभिन्न शक्ति तत्त्व का अस्तित्व भिन्नक होता है. इसिलए जब व्यक्ति साधना मार्ग पर अग्रसर होता है तो सफलता के अभीप्राय प्रायः भिन्न हो जाते है. किसी को बहुत ही कम समय में तो किसी को वर्षों तक कोई अनुभव नहीं होता.

तो क्या इसका अर्थ ये हुआ की उनमे प्राण शक्ति कम है? इसके बहुत से कारण हो सकते है. जैसे हमने जाना की आत्मशक्ति बाकि दोनों शक्तियो को संचालित करती हे तो जब आत्मशक्ति का विकास कम ज्यादा होता है तो इसका प्रभाव प्राणशक्ति और मनःशक्ति पर भी तो होगा.

प्राण शक्ति और मनःशक्ति के संयोग से ही एषणाओ और वृत्तियो का आविर्भाव होता है जिसका निष्कर्ष हे ज्ञान, वैराग्य और विवेक है.   

एक और मुख्य कारण मनोमय शक्ति का अस्तित्व. दूसरे लोको की आत्माए तो प्राण शक्ति की अधिकता के कारण ही किसी एक मंडल से दूसरे मंडल में प्रवेश कर पाती है और प्रबल मोनोमय शक्ति के द्वारा ही अपने मनचाही या पूर्व काया में प्रकतिकरण कर सकती है.

प्राण शक्ति के के तीन मुख्य स्त्रोत है – सौर प्राण शक्ति, वायु प्राण शक्ति और भू प्राण शक्ति. सूर्य से जो प्राण शक्ति प्राप्त होती है उसे सौर प्राण शक्ति कहते है. जिस से सम्पूर्ण शरीर को प्राश्चेतना मिलती है और मानव शरीर सर्वदा स्वस्थ रहता है. योगी गन सूर्य की ओर पीठ करके बैठते है ताकि मेरुदंड  स्थित केन्द्र ज्यादा से ज्यादा सौर प्राण उर्जा ग्रहण कर सके.

साधना के कुछ समय पश्चात शरीर में प्राण शक्ति के आविर्भाव के कारण हम महसूस कर सकते हे की जो मृत कोशिका है जिनका कोई सक्रीय उपयोग नहीं होता जैसे केश, नख इन में प्राण शक्ति का संचार होने के कारण इनमे वृद्धि होने लगती है. इसलिए योगियों की जटाए लंबी होती है. देखिये हमारे साथ के ऐसे कई व्यक्ति है जो वारंवार कहते रहते हे की मेरे केश ही नहीं बढते और ना ही नाख़ून तो जब तक प्राण शक्ति का अभाव हमारे शरीर में रहेगा यही स्थिति तो बनी रहेगी न.

योगियों का दीर्घ काल तक समाधी में रहने का कारण भी प्रचुर प्राणशक्ति ही है. जितनी प्राण शक्ति में अधिकता उतनी ही ध्यानस्थ होना या समाधी सरलता से लग जाती है.

वायु प्राण शक्ति अर्थात हमारा श्वास उच्छवास. जिसे दूसरे शब्द में हम जीवन शक्ति कह सकते है जिसकी वजह से हम जिवंत रह पाते है. वायु प्राणशक्ति वास्तव में सूक्ष्मतम प्राण वायु है जिसे ‘ईथर’ कहते जो सभी जगह व्याप्त है. संपूर्ण विश्व ब्रम्हांड में इसका अस्तित्व सामान है.

वायु ग्रहण करने की क्रिया सभी जगह एक सी ही तो है हम विश्व के किसी भी कोने में चले जाए सांस तो हर जगह लेते ही है सो इर्थर सब जगह विद्यमान है. वायु प्राण शक्ति अधिक से अधिक प्राप्त हो इसलिए सरल मार्ग जो योग मे बताया है वो है प्राणायाम. एक निश्चित लय ताल में प्राणायाम क्रिया की जाए तो वायु से हम प्राण शक्ति ग्रहण कर सकते है. इस क्रिया से सूक्ष्म शरीर भी विकसित होने लगता है.

यही कारण है की उच्च कोटि के संत अपने पैरों को नहीं स्पर्श करने देते और नाही अपने समीप आने देते है क्युकी उनकी आभा अती विकसित होती है परिणाम स्वरूप साधारण जनमानस को इसका त्रास हो सकता हे जैसे रक्तताप का उच्च या धीमा होना, बेचैनी होना, घबराहट होना इत्यादि.

प्राण शक्ति बढाने के लिए दोनों पैरों को पानी में डाल कर कुछ समय बैठना चाहिए. क्यों की जल में प्राण शक्ति होती है. जलिए प्राणी कैसे कुछ भी बिना खाए जल में जीवित रह जाते है क्युकी उन्हें प्राण शक्ति मिलती रहती है.
प्राण शक्ति बढाने के लिए प्राण मुद्रा को नियमित रूप से करते रहना चाहिए.
पंचमहाभूतो की भूमिका को कभी नकारा ही नहीं जा सकता क्युकी जितने भी प्रकृति के गुढ़ रहस्य है  इन्ही से तो संबंधित है. और प्रकृति को समझने के लिए हमें आतंरिक चक्षु की आवश्यकता होती है. जो प्राण शक्ति द्वारा संचालित हते है.

इन सब बिन्दुओ को देने का अभिप्राय केवल इतना की साधना करने के पूर्व हम हमारी आतंरिक संरचनाओं को अच्छी तरह से जान समझले ले तो इन बिन्दुओ पर एकाग्र चित्त होके साधना में और बेहतर रूप से अग्रसर हो सकते है. क्युकी हमें अगर लूपहोल्स पाता होंगे तो हम ठीक कर सकते है.

क्रमशः

सरिता कुलकर्णी






















Monday, March 5, 2012

प्राणशक्ति का महत्व


प्राणशक्ति का महत्व 


साधक के साध्य की पूर्ति साधना से ही हो सकती है. प्राण शक्ति को छोड़ कर अन्य सभी शक्तियाँ स्थिर शक्तियाँ है. अगर किसी शक्ति में गति हे तो वो है प्राण शक्ति. और जहा गति है वही जीवन बेला है. इसलिए जीवन को ही तो प्राण कहा है. आयु समाप्त हो जाना मतलब क्या होना ? मतलब प्राण समाप्त हो जाना. हम प्रायः कई लेख पढते रहते है जिनमे साधनाओ को साधने के लिए प्राण शक्ति आवश्यकता का उल्लेख होता है.

अब यहाँ प्रश्न उठता है की आखिर ये प्राणशक्ति हे क्या ? कितनी साधनाओ में लेखो में प्रयोगों में प्राण शक्ति का उल्लेख कीया हुआ होता है परन्तु अगर हम आधारभूत तथ्यों को नहीं समझेंगे तब तक उन बिंदु पर काम कैसे कर पायेंगे ? उन्हें कैसे सुधार पायेंगे ? जिनसे सफलता का सीधा संबंध है. अगर सफलता प्राप्त करनी हे तो पहले छोटी छोटी सूक्ष्म बातो को समझना पड़ेगा क्युकी त्रुटियाँ बड़े रूप नहीं वरन सुक्ष्म रूप से ही घटित होती हे और पीछे रह जाती हे असफलता.

तो किस शक्ति का विकास करना है हमें अपने आप में? किस पर मन केंद्रित करना है कौनसी वह उर्जा है जो हमें सफलता का सोपान कराती है.

प्राण शक्ति के दो सहयोगी रूप है धनात्मक और ऋणात्मक. प्राण को अगर सरल वैज्ञानिक भाषा में समझने का प्रयास करे तो वह स्पंदन है अर्थात सिकुडना और फैलना. इस क्रिया के संपन्न होने से जो विद्युत उत्पन्न होता है वह है प्राणशक्ति. शरीर का संबंध प्राण से है और प्राण का संबंध मन से और मन का संबंध आत्मा से है. प्राणों की गतिशक्ति से ही शरीर और मन को एक साथ गति मिलती है. और एक दूसरे से अनुप्राणित होने के कारण ये एक दूसरे से जुड़े हुए रहते है. और जब प्राण शक्ति का शरीर और मन से विच्छेद हो जाता है तो उसे हम मृत्यु के नाम से संबोधित करते है.

आज के लेख का शीर्षक “विविध गुढ विषयो में प्राणशक्ति का महत्व” इसलिए रखा है क्युकी शारीरिक विज्ञान के साथ साथ ऐसे कई अनेक विज्ञानं है जैसे वैदिक विज्ञानं, योग विज्ञानं, उर्जा विज्ञानं, तंत्र विज्ञानं, वास्तु विज्ञानं या आदि जितने भी तंत्र और आध्यात्म से संबंधित विज्ञान है उन सभी के मूल में है मन, प्राण और वाक्. अब आप सोच रहे होंगे की वाक् का यहाँ क्या तात्पर्य? वाक् के कई पर्याय है परन्तु यहाँ वाक् का अर्थ पदार्थ की मूल इकाई से है. इन तीन अर्थात मन, प्राण और वाक् के योग से जो विद्युत शक्ति जन्म लेती है उसे वैश्वानर अग्नि कहते है और इस् अग्नि का जो ताप है वह हमारे शरीर का ताप है जो बराबर हर अवस्था में एक सा बना रहता है. सो सभी के मूल में प्राण है.

जिस प्रकार भौतिक विज्ञान के मूल में विद्युत शक्ति है उसी प्रकार योग विज्ञानं के मूल में प्राण शक्ति है. जिस प्रकार विगत लेख में हमने जाना था की ऊर्जा विज्ञानं और वास्तु में धनात्मक ऋणात्मक उर्जा का उल्लेख था तो उनके मूल में भी तो प्राण शक्ति ही है जो हमारे प्राण शक्ति से जिस क्षण जुड जाती हे उस क्षण हम ये निर्णय ले पाते है की जो स्पंदन हम वातावरण में महसूस कर रहे हे वह सकारात्मक है या नकारात्मक.
प्राण ऊर्जा ब्रम्हांडीय उर्जा का अंश है. तो जब हम में प्राण उर्जा का विकास होगा उतना ही हम ब्रम्हांडीय रहस्यों को अनवरत करते चले जायेंगे और साधना जगत में हमारे लिए मार्ग प्रशस्त होता चला जाएगा.

प्राण शक्ति के के तीन मुख्य स्त्रोत है – सौर प्राण शक्ति, वायु प्राण शक्ति और भू प्राण शक्ति. जिसके बारे में मै आपको अगले लेख में जानकारी देने का प्रयास करुँगी.

अब प्रश्न आता है की प्राण शक्ति को कैसे बढ़ाया जाए उसका विकास किस तरह से किया जाए. इसे  योग तंत्र के मार्ग से भी की जा सकता है परन्तु वह थोड़ी क्लिष्ट और समय लेने वाली प्रक्रिया है और उस से सरल मार्ग तो **गायत्री मंत्र** जो शरीर के प्रत्येक रोम रोम को अनिर्णीत कर प्राण उर्जा के संचार से भर देता है. अब चेतना मंत्र के बारे में पहले ही इतना ज्ञानवर्धक विवरण लेख अनुराग जी दे चुके है की यहाँ कुछ लिखना शेष नहीं. जिन लोगों ने नहीं पढ़ा हो वे जरुर पढ़े. क्युकी यही तो आधार हे न साधना जगत में सफलता प्राप्त करने का. प्राण शक्ति को मुद्राओं द्वारा भी बढ़ाया जा सकता है. मंत्रो और मुद्राओं का जोड़ अविश्वसनीय परिणाम देता है.
 
क्रमशः

सरिता कुलकर्णी









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