प्राणशक्ति का महत्व – 5
****************************************************************आज का विषय प्राणशक्ति का एक मुख्य अंग है.. विविध गुढ़ विषयो में प्राणशक्ति का रहस्य हम ज्ञात करते जा रहे है. सुक्ष्म शरीर और प्राण शक्ति का अभेद समबन्ध है. सभी शक्तियों के मूल में प्राण शक्ति है.
साधना जगत में जब तक हम उस साधना विशेष का महत्व नहीं ज्ञात कर लेते तब तक साधना में उपयोग की गई सामग्रियों का होना निरर्थक हो जाता है. क्युकी वे जैसा असर दिखाना चाहिए वैसा असर नहीं दिखा पाती. युद्ध बिना शास्त्रों का संभव नहीं उसी प्रकार साधना में साधना सामग्री शस्त्र का कार्य सम्पादित करती है जब तक हम सही शस्त्रों का उपयोग सही जगह सही योद्धा के भाति नहीं करेंगे हम विजयी नहीं हो सकते. वैसे ही साधना रूपी युद्ध में मंत्र यन्त्र सामग्री वगैरे शस्त्र ही तो है जिनका उपयोग अगर हमें भलीभांति ज्ञात ना हो तो दृश्य अदृश्य रूप से हम स्वयं का ही घात कर बैठते है.
विषय की ओर बढते हुए एक बात ध्यान में आती है किसी भी नवगंतुक के लिए सुक्ष्म शरीर के बारे में जिज्ञासा साधक समाज में हमेशा एक आकर्षण का केंद्र बनी रही है. ऐसे गुढ़ विषय के बारे में हर साधक जानने के लिए उत्सुक ही रहता है. साधक हमेशा सूक्ष्म शरीर विचरण क्रिया के बारे में जानने के लिए सतत प्रयासरत रहता है. पुस्तकीय ज्ञान आपको एक निश्चित दृष्टिकोण या धरातल जरुर दे सकता है परन्तु क्रियात्मक पक्ष एक समर्थ गुरु के बिना कैसे सम्भव हो सकता है भला?
और तंत्र तो तलवार की धार पर चलने के सामान है एक छोटी सी चूक और आप गए...वह बीच वाली स्थिति नहीं.. इस् पार या उस पार...
ये बहुत ही विस्तृत विषय है जिस पर कभी और बात करेंगे परन्तु में यहा विषयान्तर ना करते हुए प्राणशक्ति का सुक्ष्म शरीर में महत्व किस प्रकार है.....
सूक्ष्म शरीर की महत्ता एक सच्चा साधक ही समझ सकता है क्युकी ये एक माध्यम है जिस से आप अपनी अंतश्चेतना कों ब्रम्हांडीय चेतना से जोड़ते है जसके द्वारा आप अनंत लाभ भी प्राप्त करते जाते है.... सुक्ष्म शरीर के विचरण में प्राणशक्ति का मुख्य सहभाग है. या यो कह ले की सूक्ष्म शरीर का बेस प्राण तत्व है.. ब्रम्हांडीय उर्जा से समपर्क स्थापित करने के लिए प्राण वाहक सूक्ष्म शरीर ही तो एक सशक्त माध्यम है जिस से सुक्ष्म जगत के रहस्य अनावृत होते चले जाते है. क्युकी भौतिक देह से ऐसा कर पाना किसी महासिद्धयोगी के द्वारा ही सम्भव है. देह सिद्धि के उपरान्त.. वैसे ये उतना सरल नहीं... इसका कारण ये है की जितना प्राण तत्व जाग्रत अर्थात सशक्त होगा ये क्रिया उतनी ही सरलता से होगी. शक्ति की गति असीमित है.
सूक्ष्मशरीर प्राण के वाहक रूप में कार्य करता है. स्थूल शरीर अर्थात भौतिक शरीर की जितनी भी क्रियाए है उन का सञ्चालन और नियंत्रण प्राणशक्ति करती है और वह शक्ति सूर्य से प्राप्त होती है.
शरीर में एक ऐसा चक्र है जो अत्यंत ही रहस्यमय है जिसे योग भाषा में “प्राण चक्र” कहते है. यह षटचक्रो से अलग है एक स्वतंत्र चक्र है. योगिगण उस चक्र पर मन कों केंद्रित कर स्थूलशरीर कों सूक्ष्मशरीर से प्रथक कर कार्य संपादित करते है.
परन्तु अब प्रश्न ये है की प्राण चक्र क्या है ? इसका क्या कार्य है ?
प्राण चक्र का काम है प्राणशक्ति में समाहित विभिन्न अंशो कों अलग अलग करना, फिर उन प्राण अंशो कों प्राणवहा नाडीयों द्वारा अंगों में अपना कार्य विशिष्ट करने के लिए भेजना.
सूर्य से प्राप्त की हुई और सूक्ष्म शरीर द्वारा विशिष्ट उपयोग के लिए तयार की गई यह प्राणशक्ति ही स्थूलशरीर कों जीवित रखने वाली सभी प्रकार की जीवनदायिनी शक्तियों का मूल स्त्रोत है.
अंत में एक बात कहना चाहूंगी की जब हम साधना में बैठेते है तो जब तक हमारे शरीर कों नहीं साध लेते तब तक हमें मनचाही सफलता नहीं प्राप्त होती. शरीर कों साधना अर्थात केवल बाह्य रूप में साफ़ सफाई या लंबी बैठक से ही नहीं अपितु जब हम बैठे तो हमें भान ही ना रहे की कब सुबह से शाम होगी. शरीर रूपी माध्यम कों सशक्त बनाने के लिए माध्यमिक या प्रारंभिक ज्ञान होना भी उतना ही आवश्यक है. ताकि साधना काल में हो रहे परिवर्तनो, अभीक्रियाओ या संकेतों कों सही रूप से समझ कर योग्य प्रतिसाद दे कर हम अपना अभीष्ट पूर्ण कर सकते है.
क्रमशः
वैराग्य निवृति धर्मं का प्रतीक और विवाह प्रवृत्ती धर्म का प्रतीक है
सरिता कुलकर्णी