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Thursday, November 15, 2012

वास्तु शास्त्र ओर दक्षिण दिशा       ( Part-3 )

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पिछले लेख को आगे बढाते हुए कुछः और बिन्दुओ को आपके सामने राखति हुं।

दक्षिण दिशा की तरफ़् कम से कम खिडकी व दरवाजा रखे। दक्षिण कि तरफ़् वास्तु देवता का बाया सीना, बाया फ़ेफ़्द तथा गुर्दा होता है। दक्षिण दिशा मे दोष होने पर शरीर के इस अंगो मे खराबी उत्पन्न हो जाती है। पत्थर या कच्हि मित्ति का बन्दर मुख्य दरवाजे या ड्राइंग रुममे लगाना चाहिये ।
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नींद के लिये दक्षिण दिशा बहुत् ही अछ्हि होती है क्युंकी इस दिशा कि गर्मी हमे रात होते होते सोने के लिये मजबूर कर देती है।

दक्षिण दिशा मे रेह्ने वालों को आपने घरो मे खासकर गर्मी के दिनों मे दक्षिण दिशा कि सभी खिडकी और दरवाजों को बन्द रखना चाहिये।

अगर आपका घर दक्षिणमुखी है तो बच्चो के पढने-लिखने के लिये मकान के वायव्य कोण मे स्थित कमरा अधिक उपर्युक्त होगा। रसोइ घर के स्टोर के लिये दक्षिण दिशा कि तरफ़् बने कमरे का प्रयोग मे लाये। सोने के लिये पश्चिम दिशा तथा दक्षिण दिशा के कोने मे स्थित कमरा सोने के लिये उपर्युक्त होता है। वायव्य कोण मे 'स्फ़तिक् टेकं' बनाये।

पश्चिम दिशा मे शौचालय तथा स्नानघर को संयुक्त रूप से बनवा सकते है। ईशान कोण मे ज्यादा से ज्यादा खिड्कियों का निर्मान कराये।

घर के बडे - बुढों को दक्षिण पश्चिम मे स्थित कमरे मे सोना चाहिये। यहां अधेड तथा बुढे व्यक्ति को सूलझने से उनका बुढापा कष्टकारी नही लगता। जीवन सुखपुर्वक बीतता है।

दक्षिण मुखी मकान या मार्केट मे होट्ल, हारड्वेयर कि दुकान, टायर, तेल या रसायन कि दुकान तथा 'ब्युटि पारलर' कि दुकानो का करना ज्यादा शुभ माना जाता है।

रसोइ घर, पानी कि टंकी, शौचालय, मुख्य द्वार कि सही स्थिति पूर्व तथा उत्तरी दिशा के अधिक खाली जगह् छोड्ने से दक्षिण मुखी घर मे भी स्वस्थ सुखी और सयंम जीवन बिताया जा सकता है।


सरिता कुलकर्णी

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