प्राणशक्ति का महत्व – ३
आज हम बात करेंगे की प्राणशक्ति के उन पहलुओ की जो जानना साधक के लिए अनिवार्य और लाभप्रद है. इन पहलुओ कों समझने से कैसे वो अपने साधनात्मक ऊर्जा और प्राणशक्ति कों संचित कर साधना जगत में अपना स्थान दृढ़ कर सकता है.* प्राणशक्ति कों कैसे महसूस किया जाए ?
प्राणशक्ति और प्राणमाय शरीर कों हम हमारे शरीर के अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग से महसूस कर सकते है
**चक्षु** बाह्य चक्षुओ से आप भालिभाती अंदाज लगा सकते है की व्यक्ति में प्राणशक्ति का क्या स्तर है. उस का आतंरिक स्वरुप जान कर प्रनेश्चेतना प्राणशक्ति का अनुमान लगा सकते है. प्राणमय शरीर की झलक हमें आँखों में मिलती है. आंखे शरीर का सर्वाधिक जीवंत अंग है. दूसरा कोई नहीं. अगर आँखों कों छोड़ दिया जाय तो शेष शरीर मृत ही महसूस होता है.
अगर आँखे बुझी बुझी सी तेजहीन हो तो समझ लीजिए प्राणमय शरीर निर्बल है. वह दूसरी ओर अगर आँखों में तेज है प्रखरता है स्थिरता है तो प्राणमय शरीर स्वस्थ एवं शक्तिशाली है.
सबसे सशक्त माध्यम भावो कों व्यक्त करने का अगर कोई है तो वे है आँखे. आंखे ही तो भावो कों व्यक्त करती है. और भाव प्राणमय शरीर से उत्पन्न होते है. शरीर की आतंरिक घटनाओं का खुलासा आँखों से होता रहता है.
* प्राण शक्ति का क्षय कैसे होता है ?
जब आप किसी व्यक्ति के निकट जाने पर आप जम्हाई लेने लगे, थकान महसूस हो, अलस्या अनुभव करने लगो तो हमें समझ लेना चाहिए की उस में प्राणशक्ति कम है और अनजाने में अदृश्य रूप से वो हमसे प्राण शक्ति ग्रहण कर रहा है.
मदिरापान करने वाले, नीच कर्म करने वाले, इधर की उधर बुराई गाने वाले, पाखंडी ढोंगी, जुआ खलेने वाले व्यक्तियो में भी प्राणशक्ति कम होती है व्यसनास्कत फिर वह स्त्री रत ही क्यों ना हो व्यक्तियों में भी प्राणशक्ति कम होती है. क्युकी काम क्रिया में सर्वाधिक ऊर्जा का क्षय होता है.
दीर्घ काल रोगी में भी प्राणशक्ति कम होती है. वही किस रोगी के पास जाने पर आप अधिक समय बैठ पाए तो समझना चाहिए की वो जल्द ही रोगमुक्त होगा अर्थात उसकी प्राणशक्ति संचित करने की क्षमता तेजी से होती है.
जिन के पास बैठने की इक्शा न हो..और उसके विपरीत जिनके पास आपको सर्वाधिक जाने का मन होते रहता हो उनके सानिध्य में समय व्यतीत कैसे हो जाए पाता ना चले उनमे प्राणशक्ति बहुत अधिक होती है.
* किन जीवो में प्राणशक्ति का वास सर्वाधिक होता है ?
प्राणशक्ति का वास सबसे अधिक उन जीवो में या आत्माओं में होता है जो निर्मल, निश्छल और निष्पाप होती है. जड़ योनी अर्थात पेडो पौधों में भी प्राणशक्ति का वास होता है. वैज्ञानिक भाषा में कार्बन डायोक्साईड और ओक्सिजन के महत्व के बारे में अलग से बताने की आवश्यकता नहीं. कुछ वृक्ष जैसे पीपल, बरगद, अर्जुन, हर्रे में प्राण शक्ति सर्वाधिक होती है. जितना पुराना वृक्ष होगा उसमे उतनी अधिक प्राणशक्ति होगी. पुराने वृक्षों की छाया में थका या बीमार व्यक्ति शीघ्र आराम प्राप्त करता है. दमा अथवा श्वास के रोगियों के लिए ऐसे वृक्ष अमृत समान है.
आप अगर किसी पुराने वृक्ष के तने कों दोनो हाथों से पकड़ कर कोई याचना करेंगे तो आपको एक कंपन महसूस होगा ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्युकी वृक्ष भी महसूस करते है वृक्षों में सभी प्रकार की प्राणशक्तियो का वास होता है. भले ही वे जड़ योनी है, हमारे समान आँख नाक कान हाथ पैर इत्यादि नहीं परन्तु उनमे भी प्राणशक्ति सूक्ष्म अतिसूक्ष्म रूप से विद्यमान है.
इन महीन किंतु सूक्ष्म बातो का हमारे साधनात्मक पक्ष से गहन समबन्ध है. एक साधक जितना भावुक होता है उतना और कोई नहीं. क्युकी वे भाव ही तो है जो हमें सक्षम बना कर साधना में हमें सफलता प्रदान करते है. साधना का आरंभ भाव ही तो है और अंत भी......
क्रमशः
सरिता कुलकर्णी