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Friday, April 20, 2012

प्राणशक्ति का महत्व – 3




प्राणशक्ति का महत्व – ३

आज हम बात करेंगे की प्राणशक्ति के उन पहलुओ की जो जानना साधक के लिए अनिवार्य और लाभप्रद है. इन पहलुओ कों समझने से कैसे वो अपने साधनात्मक ऊर्जा और प्राणशक्ति कों संचित कर साधना जगत में अपना स्थान दृढ़ कर सकता है.

* प्राणशक्ति कों कैसे महसूस किया जाए ?      

प्राणशक्ति और प्राणमाय शरीर कों हम हमारे शरीर के अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग से महसूस कर सकते है
**चक्षु** बाह्य चक्षुओ से आप भालिभाती अंदाज लगा सकते है की व्यक्ति में प्राणशक्ति का क्या स्तर है. उस का आतंरिक स्वरुप जान कर प्रनेश्चेतना प्राणशक्ति का अनुमान लगा सकते है. प्राणमय शरीर की झलक हमें आँखों में मिलती है. आंखे शरीर का सर्वाधिक जीवंत अंग है. दूसरा कोई नहीं. अगर आँखों कों छोड़ दिया जाय तो शेष शरीर मृत ही महसूस होता है.

अगर आँखे बुझी बुझी सी तेजहीन हो तो समझ लीजिए प्राणमय शरीर निर्बल है. वह दूसरी ओर अगर आँखों में तेज है प्रखरता है स्थिरता है तो प्राणमय शरीर स्वस्थ एवं शक्तिशाली है.

सबसे सशक्त माध्यम भावो कों व्यक्त करने का अगर कोई है तो वे है आँखे. आंखे ही तो भावो कों व्यक्त करती है. और भाव प्राणमय शरीर से उत्पन्न होते है. शरीर की आतंरिक घटनाओं का खुलासा आँखों से होता रहता है.

* प्राण शक्ति का क्षय कैसे होता है ?

जब आप किसी व्यक्ति के निकट जाने पर आप जम्हाई लेने लगे, थकान महसूस हो, अलस्या अनुभव करने लगो तो हमें समझ लेना चाहिए की उस में प्राणशक्ति कम है और अनजाने में अदृश्य रूप से वो हमसे प्राण शक्ति ग्रहण कर रहा है.

मदिरापान करने वाले, नीच कर्म करने वाले, इधर की उधर बुराई गाने वाले, पाखंडी ढोंगी, जुआ खलेने वाले व्यक्तियो में भी प्राणशक्ति कम होती है व्यसनास्कत फिर वह स्त्री रत ही क्यों ना हो व्यक्तियों में भी प्राणशक्ति कम होती है. क्युकी काम क्रिया में सर्वाधिक ऊर्जा का क्षय होता है.

दीर्घ काल रोगी में भी प्राणशक्ति कम होती है. वही किस रोगी के पास जाने पर आप अधिक समय बैठ पाए तो समझना चाहिए की वो जल्द ही रोगमुक्त होगा अर्थात उसकी प्राणशक्ति संचित करने की क्षमता तेजी से होती है.
जिन के पास बैठने की इक्शा न हो..और उसके विपरीत जिनके पास आपको सर्वाधिक जाने का मन होते रहता हो उनके सानिध्य में समय व्यतीत कैसे हो जाए पाता ना चले उनमे प्राणशक्ति बहुत अधिक होती है.

* किन जीवो में प्राणशक्ति का वास सर्वाधिक होता है ?    

प्राणशक्ति का वास सबसे अधिक उन जीवो में या आत्माओं में होता है जो निर्मल, निश्छल और निष्पाप होती है. जड़ योनी अर्थात पेडो पौधों में भी प्राणशक्ति का वास होता है. वैज्ञानिक भाषा में कार्बन डायोक्साईड और ओक्सिजन के महत्व के बारे में अलग से बताने की आवश्यकता नहीं. कुछ वृक्ष जैसे पीपल, बरगद, अर्जुन, हर्रे में प्राण शक्ति सर्वाधिक होती है. जितना पुराना वृक्ष होगा उसमे उतनी अधिक प्राणशक्ति होगी. पुराने वृक्षों की छाया में थका या बीमार व्यक्ति शीघ्र आराम प्राप्त करता है. दमा अथवा श्वास के रोगियों के लिए ऐसे वृक्ष अमृत समान है.

आप अगर किसी पुराने वृक्ष के तने कों दोनो हाथों से पकड़ कर कोई याचना करेंगे तो आपको एक कंपन महसूस होगा ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्युकी वृक्ष भी महसूस करते है वृक्षों में सभी प्रकार की प्राणशक्तियो का वास होता है. भले ही वे जड़ योनी है, हमारे समान आँख नाक कान हाथ पैर इत्यादि नहीं परन्तु उनमे भी प्राणशक्ति सूक्ष्म अतिसूक्ष्म रूप से विद्यमान है.  

इन महीन किंतु सूक्ष्म बातो का हमारे साधनात्मक पक्ष से गहन समबन्ध है. एक साधक जितना भावुक होता है उतना और कोई नहीं. क्युकी वे भाव ही तो है जो हमें सक्षम बना कर साधना में हमें सफलता प्रदान करते है. साधना का आरंभ भाव ही तो है और अंत भी......

क्रमशः

सरिता कुलकर्णी














Thursday, April 12, 2012

प्राणशक्ति का महत्व - 2

प्राणशक्ति का महत्व – २

विगत लेख में हम ने प्राण शक्ति के मूल स्त्रोतो के बारे में पढते हुए सौर प्राणशक्ति और वायु प्राणशक्ति के बारे में जाना. इसके आगे बढते हुए भू-प्राणशक्ति के बारे में थोडा सा जानेंगे. कच्ची जमीन और पानी में भीगी हुई मिटटी में प्राणशक्ति सर्वाधिक होती है. नंगे पैर जमीन पर चलने से पुरे शरीर को प्राणशक्ति स्वतः प्राप्त होती है.
भूमि पर इस् प्रकार विचरण करने से शरीर स्वस्थ और रक्क्त स्वच्छ होता है. नेत्र ज्योति में भी विकास होता है. ह्रदय रोग के विकारों की शंका भी न्यून हो जाती है. साधारण जनमानस में प्रातः उद्यान में घूमने का प्रचलन है. उस में से आप देखेंगे कई लोगो को नंगे पैर बगीचे में टेहेलते हुए. टलने के पश्चात ही वे एक नयी तरोताजगी महसूस करते है और इसका कारण है की उन का शरीर नवीन प्राणशक्ति से भर जाता है.

विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कुछ व्यक्ति ऐसे भी है जो भूमि के अंदर अपने आप को बंद कर हफ्तों तक बैठे रहते है और जीवित भी रहते है. इसका रहस्य ये है की शरीर की त्वचा के सुक्ष्म छिद्र भू प्राणशक्ति को ग्रहण करते रहते है और इसी कारण वे जीवित भी रहते है. इसके अतिरिक्त भूक प्यास का भी उन्हें एहसास नहीं होता क्योकि भू प्राणशक्ति में वे सब तत्व विद्यमान है जो जीवन के लिए आवश्यक है.

अधिकतर जीर्ण शीर्ण पुराने मंदिरो में प्रतिमाये गर्भगृह में ही स्थापित मिलती है क्यों? क्योकि वहा प्राणशक्ति प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहती है. इसका मुख्य कारण यह है की उस स्थान पर साधना सिद्धि कर उसे जाग्रत किया गया है और आज भी वे जाग्रत अवस्था में है. भू-प्राणशक्ति, विचारशक्ति और इच्छाशक्ति को भी प्रबल करती है.
इन सब बिन्दुओ को जानने के पश्चात हम साधना स्थली के बारे में अच्छे से अध्ययन कर अपनी साधनाओ को संपन्न कर सकते है. ऐसा क्यों है की शक्ति पीठो पर बैठ के साधना में सफलता प्राप्त होती है बजाय इसके की

हम घर बैठ के उसे करे तो सफलता नहीं मिलती ?

क्योकि प्रत्येक शक्तिपीठ प्राणशक्ति से आपूरित है. वही घर में अनेक सदस्य और उनकी बिखरी मानसिकताओ का वास आपको मनोकुल वातावरण देने में असमर्थ होता है. इसलिए साधना स्थली में दूसरे व्यक्ति का वास वर्जित होता है क्यों किसी और की प्राण उर्जा का स्वरुप कैसा है आपको ज्ञात नहीं ? आपके लिए अनुकूल है या नहीं.

साधना स्थली में आपके अतिरिक्त किसी और का वास सकारात्मक हे या नकारात्मक इस् को ज्ञात नहीं किया जा सकता और फिर एसी स्थति में साधना स्थली में नकारात्मक उर्जा अक्रष्ट होके वही रह जाती है. और आपके लिए समस्याए निर्मित करती है जैसे साधना ना करने का मन होना, साधना में बैठने के साथ ही मन का भटकाव तीव्र होना कु विचार आना, शरीर में दर्द होना इत्यादि.. इसलिए योग्य स्थान, योग्य वातावरण, शुद्ध सटीक मनोभाव और साधना करने की प्रबल इच्छा आपको सफलता का सोपान कराती ही है.

योग में जल प्राणशक्ति को सर्वोत्तम और सबसे महत्वपूर्ण माना गया है क्योकि सूर्य का प्रकाश, वायु, और भूमि इन तीनो के संपर्क में जल रहता है. इसलिए जल में इन तीनो की प्राणशक्तियों का सम्मिश्रण रहता है.
प्राण शक्ति की बात करते हुए प्राणायाम को बिसराया नहीं जा सकता. प्राणायाम शब्द मात्र से समझा जा सकता है की प्राण को प्राप्त करने के विविध आयाम “प्राणायाम”. जिस प्रकार प्राण का संबंध प्राण से है उसी प्रकार

ध्यान का संबंध मन से है. और इन दोनों का अस्तित्व साधना में अक्षुण्ण है.

साधना में प्राणशक्ति और मनःशक्ति से सम्बंधित सिद्धिया परम उच्च स्थान पर है उसी प्रकार साधक  को किसी भी साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए भी अगर किसी मूल बिन्दुओ की आवश्यकता है तो वो मनःशक्ति और प्राणशक्ति ही है. और इसीलिए कहा गया है की सभी के मूल में प्राण है..

इन से संबंधित सिद्धिया -  * प्राणजन्य *मनोजन्य *आत्मजन्य है.

इन सिद्धियो में आत्मजन्य सिद्धि अत्यंत ही दुर्लभ है. अत्मजन्य सिद्धि की प्राप्ति किसी विरले को ही हो सकती है परकाया प्रवेश, आकाश गमन, जन्म जन्मान्तरो का ज्ञान, रूप परिवर्तन आदि इसी के अंतर्गत आती है.
* दूसरों को अपने अनुकूल करना
* जड़ वास्तु को प्रभावित करना और अपने आदेश पालन हेतु बाध्य करना
* स्व शरीर पर आयु का प्रभाव नहीं पड़ना
* निरंतर स्वस्थ और निरोगी बने रहना
* मीलो दूर बैठे व्यक्ति से संपर्क स्थापित कर उसके मन का भेद जान लेना या उसके मन में विचार को डालना
* वशीभूत सम्मोहन करना
* भविष्य वर्तन

प्राण जन्य सिद्धियो से सभी कुछ संभव है. अप अपने अंतर मन और अंतर प्रानेश्चेतना से इन सभी बातो को कर ससकते है इस् अच्छी बात भला क्या हो सकती हे की आपको किसी सहारे की जरुरत नहीं अप स्वयं सक्षम होते हे अपने अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए. परन्तु यह इतना आसान नहीं जितना पढ़ने पर प्रतीत हो रहा है. पर असंभव भी नहीं. और यह सब बिना योग्य गुरु के कर पाना असंभव है. केवल गुरु के आशीर्वाद से एसी मनःस्थिति पायी जा सकती है.

क्रमशः

सरिता कुलकर्णी




































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Understanding Gandanta differently

My Observation and Interpretation of GANDANTA POINT These observations are based on Lunar Nakshtra transit.. The excercise still in pro...